रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के कारण पैदा हुए तेल संकट और रूस पर युद्ध खत्म करने के दबाव बनाने के प्रयास के लिए यूरोपीय संघ (European Union) रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध (Russian oil Embargo) लगाने की कोशिश में है. शुक्रवार को लिए गए इस फैसले से कुछ सदस्य देशों ने चिंता जताई है कि इस कदम से उनकी अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बुरा असर हो सकता है. वहीं संघ के लिए एक अच्छी बात यह है कि जर्मनी अब खुल कर रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के पक्ष में आ गया है. लेकिन आखिर 29 साल पुराना यूरोपीय संघ इस मामले में एकता को लेकर इतना संघर्ष क्यों कर रहा है.
एकमत नहीं हैं सभी देश
अगर रूसी तेल आयात की ही बात की जाए तो यूरोपीय संघ के देशों की स्थिति अलग अलग है. कई देश अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए रूस पर निर्भर नहीं हैं तो कुछ पूरी तरह से ही रूस पर निर्भर है. लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जो रूस से बहुत ज्यादा तेल आयात करते हैं, लेकिन रूस से व्यापार खत्म होने की स्थिति में आर्थिक झटका बर्दाश्त कर सकते हैं. इसमें जर्मनी का नाम प्रमुख है. फिर भी जर्मनी जैसे देश ऐसा कैसे करेंगे यह निश्चित भी नहीं है.
किन देशों को दिक्कत
रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए जरूरी है कि यूरोपीय देशों के सभी 27 सदस्य इस नीति का समर्थन करें. सबसे बड़ी समस्या कुछ छोटे देशों की है. इनमें हंगरी, स्लोवाकिया, साइप्रस जैसे देश हैं जो तेल के लिए रूस पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं और आयात प्रतिबंध कीमार इन देशों की अर्थव्य्वस्था को तोड़ कर रख देगी.
एकता आसान नहीं
ये देश अभी इस नीति के समर्थन देने की स्थिति में नहीं बताए जा रहे हैं वे इसका विरोध तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने इस नीति के नतीजों की चिंता सता रही है. मामला आसान नहीं है. यह यूरोपीय कमीशन अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन के बयान से साफ होता है जिन्होंने कहा कि एकता हासिल करना आसान नहीं है.

यूरोपीय संघ आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन (Ursula von der Leyen) इस प्रस्ताव के लिए एकता का प्रयास कर रही हैं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
कोशिश करेंगे
इस मुद्दे पर सभी की सहमति बनाने को लेकर लेयन का बताया, “जो देश अभी हिचक रहे हैं वे अभी तक तैयार नहीं हैं. हम इन देशों के साथ मिल कर बैठेंगे और व्यवहारिक धरातल पर इसका रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे. इसमें इन देशों को तेल के वैकल्पिक स्रोतों की व्यवस्था करने के लिए प्रयास भी शामिल होगा.“
हंगरी और स्लोवाकिया
इस मामले में हंगरी और स्लोवाकिया ने रूसी तेल पर अपनी निर्भरता को देखते हुए तेल आयात पर प्रतिबंध का विरोध किया है. हंगरी का प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान ने कहा का कि यह प्रतिबंध हंगरी के लिए ‘लाल रेखा’ पार करने जैसा होगा. उन्होंने यह भी कहा कि लेयन ने इस नीति के समर्थन के चक्कर पर यूरोपीय एकता पर हमला किया है.
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साइप्रस ग्रीस और माल्टा की भी अपनी समस्या
वहीं साइप्रस ग्रीस और माल्टा भी रूस तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने की नीति पर चिंतित हैं. इन तीनों देशों के पास यूरोपीय संघ में सबसे बड़े जहाजी बेड़े हैं. साइप्रस और ग्रीस के शीर्ष नेताओं ने इस मुद्दे पर दोनों देशों की स्थिति को समान बताया है. दोनों ही देश रूसी हमले के खिलाफ और प्रतिबंधों के समर्थक भी हैं.

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध के प्रस्ताव पर सभी यूरोपीय संघ (European Union) सदस्यों की सहमति के लिए संशोधन किए जा सकते हैं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
प्रस्ताव में संशोधन
अब क्या यूरोपीय संघ अपने सदस्यों की चिंताओं का समाधान कर सकेगा. रायटर के मुताबिक संघ के स्रोतों ने बताया है कि संघ के आयोग ने तेल आयात प्रतिबंध में कुछ बदलाव किए हैं जिससे इन देशों की चिंता कम हो सके. नए प्लान के मुताबिक हंगरी और स्लोविकाय को साल 2024 तक रूसी तेल आयात करने की छूट होगी. जबकि मूल प्रस्ताव में संघ को छह महीने में ही रूस तेल आयात और 2022 के अंत तक रूसी रीफाइन तेल के उत्पादों के आयात बंद करना होगा. मूल योजना में हंगरी स्लोवाकिया को 2023 तक यह नीति अपनाने का प्रस्ताव था.
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नए प्रस्ताव में शिपिंग कंपनियों को प्रतिबंध से पहले तीन महीने का संक्रमण समय दिया जाएगा जिससे वे रूसी तेल के पुराने आयात का काम खत्म कर सकें. इससे ग्रीस माल्टा और साइप्रस की समस्या का हल होने की उम्मीद जताई जा रही है. मूल प्रस्ताव में यह समय एक महीने का है. दूसरी ओर कुछ यूरोपीय नेता चाहते हैं कि रूस पर उसके विजय दिवस से पहले ही प्रतिबंध लगा दिए जाएं.
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Tags: Europe, Research, Russia ukraine war, World
FIRST PUBLISHED : May 08, 2022, 05:30 IST