संछिप्त परिचय (Short Introduction)
जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) मॉर्डन इंडिया के पहले उद्योगपति, जिन्होंने 1868 में टाटा समूह की नींव रखी थी. टेक्सटाइल इंडस्ट्री में सफलता प्राप्त करने के बाद जमशेद जी (Jamsetji Tata) ने लोहे-एवं स्टील उद्योग की स्थापना की. जब पूरे विश्व में यूरोपीय विशेष तौर पर अग्रेज ही व्यापार स्थापित करने में कुशल समझे जाते थे, तब जमशेदजी टाटा ने पूरे भारत में औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया। जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा भारत के पहले उद्योगपति थे, जिन्हें भारतीय उद्योग का जनक कहा जाता है। जमशेदजी टाटा ने ही विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने टाटा कम्पनी समूह की स्थापना की थी। इन्होंने भारत में जो औघोगिकीकरण का सपना देखा था उसको पूरा किया और तकनीकि और विज्ञान के साथ साथ इन्होने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया। अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए जमशेदजी टाटा ने अपनी जड़ो को मजबूत किया.
जमशेद जी टाटा की जीवनी (Biography of Jamsetji Tata)
जमशेदजी टाटा का जन्म 3 मार्च 1839 को गुजरात के तत्कालीन बडौदा राज्य के नवसारी में हुआ था। जो आगे चलकर विश्व व्यापार साम्राज्य की नींव रखते हुए भारतीय उद्योग के ग्रैंड ओल्ड मैन बन गए। जमशेदजी के पिता नुसीरवानजी टाटा एक मामूली हैसियत के पारसी पुरोहित ही थे। जमशेदजी की माता का नाम जीवनबाई टाटा था। जमशेद जी के पिता अपने परिवार में व्यवसाय करने वाले पहले व्य़क्ति थे।
शिक्षा ( Education)
नसरवानजी टाटा अपने14 साल के बेटे जमशेद (Jamsetji Tata) और अपनी बीबी के साथ व्यवसाय के लिए मुंबई शिफ्ट हो गए. स्थानीय दोस्तों की मदद से नसरवानजी टाटा ने कपड़े का व्यवसाय शुरू किया, छोटी उम्र में इन्होंने अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. 1856 में 17 साल की उम्र में जमशेद जी टाटा ने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया, और यहां अंग्रेजी की कक्षाएं शुरू की। 1858 में उन्होंने 19 साल की उम्र में ग्रीन स्कॉलर’ (स्नातक स्तर की डिग्री) के रूप में उत्तीर्ण हुए और पिता के व्यवसाय में पूरी तरह लग गए।. इसके बाद इनका विवाह हीराबाई डब्बू से करा दिया गया।
जमशेदजी का पहला अंतर्राष्ट्रीय उद्यम (First international business of Jamsetji Tata)
स्नातक पूरा होने के बाद जमशेद जी टाटा (Jamsetji Tata) अपने पिता के व्यवसाय में पूरा सहयोग करने लगे. लेकिन उनके पिता नसरवानजी टाटा उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना चाहते थे. जमशेद जी का मन शुरू से ही व्यापार में लगा था. उन्होंने बारीकियों से व्यापार को समझा. व्यपारा के प्रति बेटे की कर्मठता और लगन को देखकर नसरवान जी बहुत खुश हुए. अब वे अपने व्यापार को भारत से बाहर फैलाना चाहते थे.चीन और हांगकांग जैसे बड़े शहरों में जमशेद जी ने ब्रांच खोले, फिर वहीं रहकर व्यवसाय को आगे बढ़ाया. व्यवसाय के साथ इन्होंने वहीं रहकर अर्थशास्त्र की स्टडी की. इन शहरों में व्यवसाय को आगे बढ़ाकर जमशेद जी टाटा लंदन गए. इन्होंने वहा सूती कपड़ो का व्यवसाय शुरू किया. इस दौरान उन्होंने सूती वस्त्रों से संबंधित समस्याओं का अध्धयन किया.
उद्योग का आरंभ (Start of an industry)
1869 में 29 साल की उम्र में जमशेद जी ने अपने के साथ व्यवसाय शुरू किया. इन्होंने मुंबई में दिवालिया तेल मिल को खरीदा. जिसे उन्होंने कॉटन जिनिंग मिल में बदल दिया, और इसका नाम अलेक्जेंड्रिया रखा. दो साल तक सफलतापूर्वक कार्य करने के बाद जमशेदजी ने इस मिल को मुनाफे में बेच दिया. इसकी बाद की बिक्री जमशेदजी (Jamsetji Tata) के आउट-ऑफ-द-बॉक्स का एक प्रमुख उदाहरण थी.1874 में नागपुर में रुई कारखाना की स्थापना की. उन्होंने कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल रखा.जमशेदजी लंदन में थे इस दौरान उन्होंने थॉमस कार्लाइल के एक व्याख्यान में भाग लिया. फिर इनके इस्पात कारखाने की स्थापना की महत्वपूर्ण योजना बनाई। फिर इन्होंने ऐसे स्थानों को खोजा जहां इस्पात के साथ कोयला और पानी की उपलब्धता हो। काफी प्रयास के बाद उन्हे बिहार के जंगलों में सिंहभूमि में वह स्थान आखिरकार मिल ही गया। जमशेद जी को अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर इतना भरोसा था कि उन्होंने अपने बड़े बेटे दोआब को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने इस्पात कारखाना खुलने के बाद वो क्षेत्र कैसा होना चाहिए. वहां सड़कों और प्रदूषण को रोकने के लिए किस प्रकार के उपाय किये जाने चाहिए? उन्होने पत्र में लिखा.जमशेद जी की अन्य बड़ी उल्लेखनीय योजनाओं में पश्चिमी घाटों के तीव्र धाराप्रपातों से बिजली उत्पन्न करनेवाला विशाल उद्योग है जिसकी नींव 8 फरवरी 1911को लानौली में गवर्नर द्वारा रखी गई।
जब स्टील प्लांट प्रोजेक्ट लगाने के लिए दिये गये आवेदन में फाइलों में दबे रह गए
एक वेबसाइट में छपे लेख के मुताबिक भारत लौटने पर आश्वस्त जमशेदजी (Jamsetji Tata) ने आयरन एंड स्टील फैक्टरी के लिए आवेदन दे दिया । आप सोच रहे होंगे की ये आवेदन आज के जमशेदपुर के लिए था तो गलत होंगे क्योंकि टाटा ने महाराष्ट्र के चंदा (चंद्रपुर) के लोहारा और पीपलगांव में प्रोजेक्ट लगाने का आवेदन दिया था । टाटा ने सेंट्रल प्रॉविंस के कमीश्नर सर एंड्रयू फ्रेसर को सौंपा । यहां टाटा से गलती ये हुई की उन्होंने काम को एजेंट के द्वारा कराने का फैसला किया जो अनुभवहीन थे । ये आवेदन भी फाइलों में दबा रहा ।
दो साल बाद साल 1902 में जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) एक बार इंग्लैंड गए । 4 जुलाई 1902 को उन्होंने दोराब जी चिट्ठी लिखी ” मुझे ये बताते हुए अफसोस हो रहा है की अभी तक हमारी आयरन फैक्टरी को लेकर कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला । हर कोई खुद में ही व्यस्त है। अगले सप्ताह सेक्रेट्री ऑफ स्टेट ने इस मामले में बात करने का भरोसा दिया है । ” लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई । जमशेदजी (Jamsetji Tata) निराश तो हुए लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी । आयरन फैक्टरी को लेकर वो कितने आशावान थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की वे लौह अयस्क और कोयला साथ लेकर गए थे ताकी जांच पड़ताल की जा सके । उन्होंने सर बेजोन जी दादाभाई को चिट्ठी लिख कर बताया कि ” कोकिंग कोल को लेकर मैंने जर्मनी और अमेरिका में कुछ प्रयोग करवाए हैं । मैं अगले सप्ताह जर्मनी और अमेरिका जानेवाला हूं । अमेरिका में मुझे सर क्लिंटन डॉकिंस ने वादा किया है की वो उनकी मदद करेंगे । ”
जमशेदजी कभी नहीं आ पाए जमशेदपुर, पर जो सपना देखा उसे पूरा किया
जब दोराबजी नागपुर गए तो उनकी नजर म्यूजियम में जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया के मैप पर पड़ी पर जिसमें दुर्ग में लोह के खानें होने का जिक्र था । उम्मीद फिर जगी । अब दुर्ग और जबलपुर की ओर टाटा के सपनों को पूरा करने के लिए रुख किया गया । मगर यहां भी कामयाबी नहीं मिली ।
टाटा को फिर एक मयूरभंज के महाराजा के पास से चिट्ठी आई। ये चिट्ठी लिखी थी पीएन बोस ने जिन्होंने जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया के लिए मैप तैयार किया था । महाराजा ने ओडिशा में लोहे की खान का जिक्र किया और टाटा से यहां काम शुरु करने का प्रस्ताव रखा । इसी दौरान काम शुरु भी सरायकेला के खरसावां इलाके के सिनी में कैंप लगाना शुरु हुआ, प्रोजेक्ट इंजीनियर एक्सेल साहलिन अमेरिका से भारत पहुंचे तो जानकर हैरानी हुई की प्रोजेक्ट का स्थान सिनी से बदलक साकची कर दिया गया। वजह बताई गई की सिनी में जमीन की दिक्कते हैं और पानी की भी कमी है । साकची वही जगह है जहां आज का टाटा स्टील प्लांट है । साकची गांव कालामाटी स्टेशन से 20 किलोमीटर दूर था ।कालामाटी स्टेशन बंगाल-नागपुर स्टेशन के अंतर्गत आता था । प्लांट के लिए साकची का चुनाव भी एक संयोग ही ही था, रेलवे के सर्वेक्षण के दौरान साकची में भी प्लांट लगाने की बात सूझी ।
दरअसल साकची के नजदीकी स्टेशन कालामाटी से कोलकाता की दूरी 152 मिल पड़ती थी जबकि सिनी से कोलकाता की दूरी 171 मिल । साथ ही साकची और गोरुमहिसनी(यहां पर लौह अयस्क खी खाने थीं) की दूरी कम थी इतना ही नही खरकई और सुवर्णरेखा नदी भी पास में ही बहती थी और उस वक्त ये मशहूर था की किसी ने आज तक इन दोनों नदियों को सूखते हुए नहीं देखा । प्रोजेक्ट इंजीनियर साहलीन ने साकची को बेहतर जगह बताया और बिना देरी किए काम शुरु करने की बात कही । 27 फरवरी 1908 को काम शुरु हुआ और फावड़ा पड़ते ही जैसे किस्मत खुल गई।यहां हर वो चीज मिल रही थी जो प्लांट के लिए जरुरी पड़ने वाली थी । 1908 में काम शुरु हुआ तो डैम बने, रहने वालों के लिए क्वार्टर बनने लगे और 2 दिसंबर1911 में टाटा स्टील एंड आयरन कंपनी ने पहला लोहा तैयार किया ।
2 दिसंबर 1911 जश्न का दिन था मगर अफसोस इस बात का जिस लोहे का सपना जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) ने 40 सालों से हर दिन देखा वो कभी साकची आ भी नहीं सके । उनकी निधन 1904 में हो चुका था लेकिन मौत से पहले उन्होंने अपने परिवार और बेटे दोराबजी टाटा को ये सीख जरुर दे दी की कभी लोहे के सपने को छोड़ना नहीं, काम जारी रहना चाहिए चाहे इसके लिए कितनी भी कीमत चुकानी पड़े । 2 जनवरी 1919 को भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने टाटा स्टील की प्लांट का दौरा किया, साकची शहर देखने आए थे, कोलकाता से उनके लिए विशेष ट्रेन चलाई गई थी। एक समारोह में उन्होंने साकची को जमशेदपुर नाम दिया । अपने भाषण में चेम्सफोर्ड ने कहा ” ये विश्वास करना मुश्किल है कि आज से 10 साल पहले यहां जंगल और झाड़ियां ही मौजूद थीं, आज यहां फैक्टरियां हैं, वर्कशॉप हैं और करीब 45 से 50 हजार की आबादी रहती है । ये सब इसलिए हुआ क्योंकि इसके पीछे जमशेद जी नुसरवानी जी टाटा (Jamsetji Tata) की महान शख्सियत की सोच, कल्पना थी । आज इस मौके पर उनकी संतान सर दोराबजी के समक्ष मुझे ऐलान करते हुए खुशी हो रही की इस शानदार जगह को अब साकची नहीं जमशेदपुर के नाम से जाना जाएगा । ”
ताज होटल का निर्माण
ताज होटल के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी है, बताया जाता है कि लिमायर भाईयों ने अपने फिल्म का शो मुंबई में रखा। ये समय था आजादी के पहले के तब भारत में सिनेमाघरों की शुरूआत हुई थी. 7 जुलाई, 1896 को मुंबई के वाटसन होटल में फिल्मों के शो आयोजित किये गये। इन शो में सिर्फ अग्रेजों को आमंत्रित किया गया था।यहां वाटसन होटल के बाहर एक तख्ती लगी थी, जिसमें पर लिखा था भारतीय और कुत्तों का प्रवेश निषेध.भारत में पहली बार किसी फिल्म का शो हुआ था. जिसे देखने के लिए जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) काफी उत्साहित थे. मगर उनको प्रवेश नहीं मिल पाया. इस तरह का व्यवहार उन्हे पसंद नहीं आया.
दो साल के अन्दर ही वाटसन होटल को की सुन्दरता को पीछे छोड़ते हुए 1903 में ताज होटल का निर्माण करवा दिया। ताज होटल के बाहर एक बोर्ड लगवाया उसमे लिखा था “अंग्रेज और बिल्लियाँ अंदर नही जा सकते”। ये इमारत बिजली की रोशनी वाली पहली इमारत थी। आज भी ताज होटल की तुलना संसार के सबसे सर्वश्रेष्ट होटलों में किया जाता है। ताज होटल की विरासत ही सिर्फ उसे महान नहीं बनाती, बल्कि इसका मजबूती से खड़े रहना भी इसकी शान का हिस्सा है. वर्ष 2008 में जब 26/11 का मुंबई हमला हुआ था, तो ये होटल भी उसका गवाह बना था. लेकिन उसके बाद इस होटल ने खुद का फिर से खड़ा किया. ताज की परंपरा में सिर्फ अतिथियों का ख्याल नहीं रखा जाता बल्कि उसके हर एक कर्मचारी का भी ख्याल रखा जाता है
भारत में पारसी धर्म
जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है। इसकी स्थापना पैगंबर ज़राथुस्ट्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी। एक हजार सालों तक जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के एक ताकतवर धर्म के रूप में रहा। 600 BCE से 650 CE तक इस ईरान का यह आधिकारिक धर्म रहा। आज की तारीख में पारसी धर्म दुनिया का सबसे छोटा धर्म है। 2006 में न्यू यॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि दुनिया भर में पारसी धर्म के महज 190,000 अनुयायी बचे हैं।
दसवीं शताब्दी में ईरानियों का एक समूह ईरान से पलायन कर गया। इन्हें उस जगह की तलाश थी जहां वे अपनी धार्मिक गतिविधियों को स्वतंत्र होकर अंजाम दे सकें। इन्हें अंततः गुजरात में ठिकाना मिला। यहां इन्होंने इंडियन पारसी कम्युनिटी की स्थापना की। जोरोएस्ट्रिनिइजम को ही ईरान में पर्शा बोला जाता है और ये गुजरात आकर पारसी बन गए।
दिग्गज कारोबारी ही नहीं महान राष्ट्रवादी और परोपकारी भी
जमशेद जी (Jamsetji Tata) दिग्गज उद्योगपति के साथ ही बड़े राष्ट्रवादी और परोपकारी थे. आज भले ही परोपकार या फिलेंथ्रॉपी की कारोबारी दुनिया में गूंज हो लेकिन जमशेद जी के बेटे दोराब टाटा ने 1907 में देश की पहली स्टील कंपनी टाटा स्टील एंड आयरन कंपनी, टिस्को खोली थी तो यह कर्मचारियों को पेंशन, आवास, चिकित्सा सुविधा और दूसरी कई सहूलियतें देने वाली शायद एक मात्र कंपनी थी।
जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति तथा औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक थे। भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी (Jamsetji Tata) ने जो योगदान दिया वह असाधारण और बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जब सिर्फ अंग्रेज ही उद्योग स्थापित करने में कुशल समझे जाते थे, जमशेदजी ने भारत में औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया था। टाटा साम्राज्य के संस्थापक जमशेदजी (Jamsetji Tata) द्वारा किए गये कार्य आज भी लोगों प्रोत्साहित करते हैं। उनके अंदर भविष्य को देखने की अद्भुत क्षमता थी जिसके बल पर उन्होंने एक औद्योगिक भारत का सपना देखा था। उद्योगों के साथ-साथ उन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध कराई।
खड़ा किया साम्राज्य
जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति तथा औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक थे। भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी ने जो योगदान दिया वह असाधारण और बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जब सिर्फ अंग्रेज ही उद्योग स्थापित करने में कुशल समझे जाते थे, जमशेदजी ने भारत में औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया था। टाटा साम्राज्य के संस्थापक जमशेदजी द्वारा किए गये कार्य आज भी लोगों प्रोत्साहित करते हैं। उनके अंदर भविष्य को देखने की अद्भुत क्षमता थी जिसके बल पर उन्होंने एक औद्योगिक भारत का सपना देखा था। उद्योगों के साथ-साथ उन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध कराई।
व्यवसायिक वाहन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी
टाटा मोटर्स भारत में व्यावसायिक वाहन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। इसका पुराना नाम टेल्को (टाटा इंजिनीयरिंग ऐंड लोकोमोटिव कंपनी लिमिटेड) था। यह टाटा समूह की प्रमुख कंपनियों में से एक है। इसकी उत्पादन इकाइयाँ भारत में जमशेदपुर (झारखंड), पुणे (महाराष्ट्र) और लखनऊ (यूपी) सहित अन्य कई देशों में हैं। टाटा घराने द्वा्रा इस कारखाने की शुरुआत अभियांत्रिकी और रेल इंजन के लिए की गई थी। किन्तु अब यह कंपनी मुख्य रूप से भारी एवं हल्के वाहनों का निर्माण करती है। इसने ब्रिटेन के प्रसिद्ध ब्रांडों जगुआर और लैंड रोवर को भी खरीद लिया है।
मृत्यु
जमशेद जी (Jamsetji Tata) ने भारत में औधोगिक विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है और इन्होने अपने जीवन में मेहनत और अपनी क़ाबलियत से बहुत कुछ हासिल किया। जमशेद जी अपनी आशाओं के प्रतिकूल 65 साल की अवस्था में 19 मई सन 1904 में इनका देहान्त हो गया।