शंघाई सहयोग संगठन (sco) क्या है?
शंघाई सहयोग संगठन ( SCO ) की उत्पति साल 2001 में तत्कालीन शंघाई-5 से हुई थी. शंघाई-5 समूह का अस्तित्व वर्ष 1996 में चीन के इसरार पर आया था. उससे पहले, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद चीन और चार अन्य देश, रूस, क़ज़ाख़िस्तान, किर्गीज़िस्तान और ताजिकिस्तान (Russia, Kazakhstan, Kyrgyzstan and Tajikistan) एक साथ आए थे. इन देशों के साथ चीन की सीमा सुनिश्चित नहीं थी. चीन ने पांच देशों का समूह इसीलिए बनाया था, जिससे कि इन देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद का शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा किया जा सके. सीमा विवाद सुलझाने के बाद ये सभी पांच देश मिलकर शंघाई-5 का गठन करें, जिससे कि आपस में राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों में सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके. वर्ष 2001 में इस समूह में उज़्बेकिस्तान शामिल हुआ. जिसके बाद,शंघाई- 5 का नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन कर दिया गया।
इन सभी देशों में राष्ट्रपति प्रणाली वाली शासन व्यवस्था है, जिसमें राष्ट्रपति ही कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं. उन्हीं के हाथ में विदेश नीति, सुरक्षा, रक्षा और सैन्य मामलों की कमान होती है. जबकि इन देशों के PM, ओहदे में राष्ट्रपति से नीचे होते हैं. उन्हें आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मसलों से जुड़े फ़ैसले करने के अधिकार होते हैं. इस तरह से, शंघाई सहयोग संगठन के भीतर दो उच्च स्तरीय व्यवस्थाओं का निर्माण किया गया. राष्ट्राध्यक्षों की परिषद (CHS), जिसमें सभी देशों के राष्ट्रपति शामिल होते हैं; और शासनाध्यक्षों की परिषद (CHG), जिसमें इन देशों के प्रधानमंत्री शामिल होते हैं. CHG की ज़िम्मेदारी व्यापारिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों से संबंधित होती है.
भारत, वर्ष 2005 में इस संगठन का पर्यवेक्षक बना था. पर्यवेक्षक के तौर पर भारत के विदेश मंत्री या ऊर्जा मंत्री (SCO के कई देशों में तेल, गैस, कोयला और यूरेनियम के विशाल भंडारों को देखते हुए) SCO के दोनों ही शिखर सम्मेलनों यानी शासनाध्यक्षों (CHG) और राष्ट्राध्यक्षों (CHS) की बैठक में शामिल होता रहा था. भारत की संसदीय प्रणाली के तहत, यहां पर कार्यपालिका के वास्तविक अधिकार देश के प्रधानमंत्री के पास होते हैं. इसीलिए, भारत की ओर से प्रधानमंत्री ही CHS की बैठकों में शामिल होते आए हैं.
शंघाई सहयोग संगठन SCO के सदस्य देश – कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान, भारत और पाकिस्तान
शंघाई सहयोग संगठन SCO के पर्यवेक्षक देश – अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया
शंघाई सहयोग संगठन SCO के वार्ता साझेदार देश – अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका इस संगठन के वार्ता साझेदार देश हैं।
SCO संगठन का काम क्या है?
- सदस्य देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करना
- परस्पर विश्वास और भरोसे को बढ़ाना
- राजनैतिक, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना
- एजुकेशन, एनर्जी, ट्रासपोर्ट, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में संबंधों को बढ़ाना
- संबंधित देशों के साथ शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना
- लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना।
भारत के लिए SCO का महत्व?
दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रीय संगठन में रूस और चीन के बाद भारत तीसरा देश हैं। जिससे इसका महत्व बढ़ जाता है। ना ही हमारा पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध और ना ही चीन के साथ। पिछले साल ग्लवान घाटी पर भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच हुए झड़प के बाद तो हालात और तनाव पूर्ण हो गए। अगर बात करें रूस और मध्य एशिया की तो उनके साथ हमारी अच्छी बनती है। जो कि भारत के लिए फायदेमंद हैं, जैसे कि मध्य एशिया के देशों उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और की तो प्राकृतिक गैस और तेल उत्पादक देशों में शामिल हैं। इसके तहत SCO भारत के लिए अच्छा जरिया बन सकता है। अगर इनके साथ भारत का करार हो तो हमे सस्ते में तेल और गैस की सप्लाई मिल सकती है।
2017 में SCO से जुड़ने के साथ भारत वैश्विक स्तर पर काफी मजबूत हो चुका है। मध्य एशिया के साथ ऊर्जा सुरक्षा में भागीदारी निभाने के साथ रूस और यूरोप तक व्यापार के रास्ते खुल सकते हैं। यदि भारत अपनी आतंक विरोधी क्षमताओं में सुधार करना चाहता है तो उसे SCO के क्षेत्रीय आतंकी रोधी के माध्यम से भारत को गुप्ता सूचनाएं, प्रौघोगिकी, कानून में परिवर्तन की दिशा में काम करना अति आवश्यक है।
SCO की सहायता से भारत मध्य एशिया के साथ व्यापार में आने वाले अवरोध को दूर कर सकता है। क्यों कि मध्य एशिया वैकल्पिक मार्ग के रूप में कार्य करता है। SCO की सहायता से भारत मादक पदार्थों और हथियों के प्रसार को रोक सकता है। रूस भारत का पूराना दोस्त है। इसकी सहायता से भारत अपने चिर प्रतिद्वंदियों जैसे कि पाकिस्तान और चीन के साथ जुड़ने के लिए एक साझा मंच प्रदान कर सकता है। SCO के माध्यम से भारत को आर्थिक रूप जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार और वित्तीय, बैकिंग और फार्मा उद्योंगों के लिए एक विशाल बाजार मिल सकता है।
कैसा है भारत का मध्य एशिया देशों के साथ संबंध
भारत मध्य एशियाई देशों के साथ किसी प्रकार का सीमा साझा नहीं करता है। लेकिन भारत और मध्य एशिया सांस्कृतिक, ऐतहासिक और आर्थिक संबंधों को साझा करता है। इनसे हमारा रिश्ता काफी पुराना है। भारतीय संस्कृति मध्य एशिया देशों में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अगर इतिहास की बात करें तो राजा कनिष्क का राज भारत के अलावा मध्य पूर्व एशिया तक फैला हुआ था। इसलिए वहां के लोग राजा कनिष्क को अपना पूर्वज मानते हैं। तजाकिस्तान में गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगौर की प्रतिमा स्थापित की गई है। यहीं नहीं योग दिवस को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए इस देश ने भारत का समर्थन भी किया। मध्य एशिया देशों ने चाबहार पोर्ट की विकसित करने के काम की भारत की काफी प्रशंसा की। ईरान स्थित इस बंदरगाह से भारत और मध्य एशिया के बीच जुड़ाव उत्पन्न होगा। अमेरीका, रूस और जर्मनी के बाद भारत ताजिकिस्तान के फारखोर में अपना सैन्य बेस स्थापित करने वाला चौथा देश बन जाएगा।
चुनौतियां
पाकिस्तान भी SCO का सदस्य है और वह भारत की राह में दुश्वारियाँ तथा कठिनाइयों का कारण लगातार बनता है। ऐसे में भारत की स्वयं को मुखर तौर पर पेश करने की क्षमता प्रभावित होगी। इसके अलावा चीन एवं रूस SCO के सह-संस्थापक है। इसमें इन देशों की प्रभावी भूमिका है। इस वज़ह से भारत को अपनी स्थिति मज़बूत बनाने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं SCO का रुख परंपरागत रूप से पश्चिमी विरोधी है, जिसकी वज़ह से भारत को पश्चिम देशों के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी में संतुलन कायम करना होगा।
निष्कर्ष
मौजूदा दौर में SCO जियो-पॉलिटिकल और जियो-इकॉनमिक प्रभाव की दृष्टि से विशाल यूरेशियाई क्षेत्र में ये इकलौता संगठन है. क्योंकि भारत के लिए SCO का सदस्य बने रहने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इसके माध्यम से वो मध्य एशिया के देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रख सकता है. मध्य एशियाई देश हमारे व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में आते हैं और हज़ारों वर्षों से इन देशों के साथ भारत के ऊर्जावान और बहुआयामी संबंध रहे हैं. भारत की सुरक्षा की दृष्टि से भी मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान बेहद महत्वपूर्ण हैं, जो उसकी ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं. इन देशों से संपर्क बढ़ाने से भारत को व्यापार, आर्थिक प्रगति और विकास में सहयोग मिलेगा.