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Reading: क्या है विक्रम सम्वत और शक सम्वत : what is  Vikrami calendar and its importance
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Bharat.earth > Blog > History > क्या है विक्रम सम्वत और शक सम्वत : what is  Vikrami calendar and its importance
History

क्या है विक्रम सम्वत और शक सम्वत : what is  Vikrami calendar and its importance

Meenu
Last updated: April 18, 2024 11:22 am
Meenu
1 year ago
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विक्रम सम्वत – हिन्दू नववर्ष की शुरुवात अभी कुछ दिन पूर्व अर्थात 09/04/2024 में हो गयी है | हमारे प्राचीन हिन्दू कैलेण्डर विक्रम सम्वत के अनुसार हम 2081 में प्रवेश कर चुके है, हालांकि ग्रिगोरियां कैलेण्डर जो की हमारा रास्ट्रीय कैलेंडर है उसके अनुसार हम अभी वर्ष 2024 में हैं | विक्रम सम्वत पचांग जिसका उपयोग हम भारत की स्वतंत्र से पूर्व करते थे | क्या है विक्रम सम्वत आइये विस्तार से समझे |

Contents
  • विक्रम सम्वत क्या है :
  • विक्रम सम्वत की रचना का आधार :
  • विक्रम सम्वत में महीनों के नाम एवं दशा :
  • शक सम्वत क्या है :
  • शक सम्ववत की शुरुआत :
  • विशेष तथ्य :
  • विक्रम संवत का उपयोग अब क्यों नहीं किया जाता :
  • विक्रम सम्वत रास्ट्रीय कैलेंडर बनाने की मांग :-

विक्रम सम्वत क्या है :

विक्रम सम्वत एक बहुत ही प्राचीन एवं प्रचलित हिन्दू पंचांग अर्थात कैलेंडर है | जिसका आरम्भ ईसा वर्ष से 57 वर्ष पूर्व हुआ था | यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रयोग किया जाने वाला पारंपरिक पंचांग है | यह पंचांग चन्द्र और सौर गणनाओं पर आधारित है | इसका आरम्भ उज्जैन के चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य के राजतिलक की तिथि से होता है , इसकी रचना उस काल के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री “वराह मिहिर” ने की थी | वराह मिहिर राजा विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक थे |

विक्रम सम्वत की रचना का आधार :

विक्रम सम्वत में वर्ष सूर्य पर आधारित तथा महीने चन्द्रमा की गति पर निर्भर होते हैं | धरती द्वारा सूर्य का एक चक्कर लगाने पर एक वर्ष होता है जो की 365 दिन से कुछ अधिक होता है | प्राचीन ग्रन्थ “सूर्य सिद्धांत ” के अनुसार पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन, 15 घटी, 31 विपल , 24 प्रतिविपल लगाती है | आधुनिक विज्ञान कुछ वर्ष पहले ही ये गणना कर पाया है इससे पहले ही यूरोप में एक वर्ष 360 दिन का होता था |विक्रम सम्वत में महिना 28,29,39 दिन का होता है, हर तीसरे वर्ष पर एक महिना अतिरिक्त होता है जिसे अधिक मास कहते हैं | ये अधि मास इसलिए होता है ताकि इसे सूर्य वर्ष से मिलाया जा सके | इससे महीने और ऋतुओं का ताल मेल सटीक रूप से बैठता है | इसी कारणवश भारत के हिन्दुओं और सनातन धर्म के अन्य सम्प्रदायें जैसे बौद्ध ,सिख, जैन इत्यादि अपने पर्व,त्यौहार,शुभ मुहूर्त एवं ज्योतिष गणनाएं भी विक्रम सम्वत के द्वारा ही तय किया जाता है | इसमें चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि को अर्थात प्रतिपदा को नववर्ष का आरम्भ माना जाता है |

विक्रम सम्वत में महीनों के नाम एवं दशा :

महीनों के नामपूर्णिमा के दिन नक्षत्र जिसमें चन्द्रमा होता हैअवधिशुरुआत की तिथि (ग्रेगोरियन)
चैत्रचित्रा, स्वाति30/31 मार्च से अप्रैल
वैशाखविशाखा, अनुराधा30 अप्रैल से मई
ज्येष्ठजेष्ठा, मूल30 मई से जून
आषाढ़पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, सतभिषा30 जून से जुलाई
श्रावणश्रवण, धनिष्ठा30 जुलाई से अगस्त
भाद्रपदपूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद30 अगस्त से सितंबर
आश्विनअश्विनी, रेवती, भरणी31सितंबर से अक्टूबर
कार्तिककृत्तिका, रोहिणी31अक्टूबर से नवंबर
मार्गशीर्षमृगशिरा, आर्द्रा31नवंबर से दिसंबर
पौषपुनर्वसु, पुष्य31दिसंबर से जनवरी
माघमघा, आश्लेशा31जनवरी से फरवरी
फाल्गुनपूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त31फरवरी से मार्च
विक्रम सम्वत पंचांग

प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं, जिसे कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष कहते हैं।

शक सम्वत क्या है :

शक सम्वत एक प्राचीन हिन्दू कैलेंडर है जो भारतीय समुदायों में प्रयोग किया जाता है। इसमें भी महीनो के नाम एवं क्रम विक्रम सम्वत के सामान ही है | दोनों ही संवत में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर कृष्णा पक्ष और शुक्ल पक्ष होते हैं | शक सम्वत में 12 माह होते हैं, जिन्हें हिन्दू पंचांग में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्वयुज, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, और फाल्गुन के नाम से जाना जाता है। किन्तु शक सम्वत में तिथियाँ अंग्रेजी कैलेण्डर की तरह मध्य रात्रि से शुरू होकर अगले मध्य रात्रि तक होती है हर महिना 30 दिन का होता है | इसका नव वर्ष 22 मार्च से आरम्भ होता है | यह कैलेंडर भारतीय संस्कृति, धार्मिक उत्सव, और पर्वों को आधारित करने के लिए प्रयुक्त होता है।

शक सम्ववत की शुरुआत :

शक सम्वत का प्रारंभ 78 ईसापूर्व सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के राज्याभिषेक के समय माना जाता है। इसे चंद्रवंशी वंशज महाराज शालिवाहन के शासनकाल में विक्रम संवत के नाम से जाना जाता था । वर्ष 1955 में भारत सरकार ने कैलेंडर रिफोर्म कमेटी बने थी , जिसकी अनुशंसा पर सूर्य आधारित “शक सम्वत” को आधिकारिक कैलेण्डर माना गया | लेकिन वास्तव में ये निर्णय अंग्रेजी कैलेण्डर जैसे दिखने और सेक्युलर बनने के दबाव में लिया गया | इसे एक प्रकार की औपनिवेशिक मानसिकता कहा जा सकता है की भारतीयों पर एक अप्रचलित कैलेण्डर को स्वतंत्रता के बाद थोप दिया गया | संभवतः उन्हें ये बात नहीं पची की कोई हिन्दू पंचांग अंग्रेजी से अधिक प्राचीन और अधिक वैज्ञानिक कैसे हो सकती है |

  • शक सम्वत आज एक मात्र औपचारिक पंचांग बन के रह गया है|
  • पुरे विश्व में 12 महीने का एक वर्ष एवं 7 दिन का एक सप्ताह की व्यवस्था है वो विक्रम सम्वत की देन है | विक्रम सम्वत अधिक वैज्ञानिक है लेकिन उसे अव्यवहारिक एवं जटिल बता कर लागु नहीं किया गया |
  • जबकि नेपाल में आज भी विक्रम सम्वत ही प्रचलित है |

विशेष तथ्य :

संस्कृत विद्वान और भारत रत्ना से सम्मानित प्रोफ़ेसर ” पांडुरंग वामन काणे ” अपनी पुस्तक धर्म शास्त्र का इतिहास में लिखते हैं – ” विक्रम सम्वत सबसे वैज्ञानिक है | पश्चिमी कैलेण्डर में सूर्य ग्रहण , चन्द्र ग्रहण और अन्य खगोलीय परिस्थितियों का कोई संकेत नहीं मिलता | जबकि विक्रम सम्वत बता देता है की अमुक दिन ही ग्रहण होगा| यह ऋतुओं के साथ ग्रह – नक्षत्रों की पूरी स्थिति को भी बताता है |”

  • विक्रम संवत की जब 2000 वर्ष पुरे हुए तब पुरे देश में इसके उपलक्ष्य में कार्यक्रम करवाया गया था | ईसवी कैलेण्डर के अनुसार 1944 में विक्रम सम्वत ने अपने 2000 वर्ष पूर्ण किया था |
  • ग्वालियर के राजा जीवाजी राव सिंधिया ने विक्रम उत्सव मानाने का घोषणा की थी |
  • उनकी पहल पर विक्रम स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया गया | इसके संपादक पंडित ” सूर्य नारायण व्यास ” जी हैं | राजा विक्रमादित्य , कालिदास, और उज्जैनी नगरी पर यह सबसे प्रमाणित पुस्तक मानी जाती हैं |
  • विक्रम सम्वत के 2000 वर्ष पूर्ण होने पर ” विक्रमादित्य ” नमक एक फिल्म का भी निर्माण किया गया था जो ईसा वर्ष 1945 में रिलीज हुई थी | इसका निर्देशन विजय भट्ट ने किया था |
  • विक्रम उत्सव में वीर सावरकर और के. एम्. मुंशी जैसे स्वतंत्रता सेनानी ने भी सहभागिता की थी | उनका प्रयास था की इसे भारत की सांस्कृतिक पुनः उत्थान की अवसर की तरह प्रयोग किया जाये | लेकिन भारत के बंटवारे एवं हिन्दुओं के विस्थापन और नरसंहार से पैदा अवसाद ने पुरे प्रयास पार्को विफल बना दिया |

* आज सेल्युलर सरकारों ने विक्रम सम्वत को त्याग दिया है लेकिन वे इसे भारतीय जनमानस से नहीं हटा सके | आज भी पर्व त्योहारों में ही नहीं अपने घर एवं अन्य प्रतिष्ठानों में भी विक्रमी तिथि लिखवाना पसंद करते है |

विक्रम संवत का उपयोग अब क्यों नहीं किया जाता :

विक्रम सम्वत का उपयोग सरकारी और व्यावसायिक गतिविधियों में अधिक नहीं होता है। किन्तु हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले पर्व, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के लिए शुभ मुहूर्त एवं ज्योतिष गणना का कार्य विक्रम संवत के द्वारा ही होता है , किन्तु सरकारी एवं व्यावसायिक गतिविधियों में इसका उपयोग नहीं किया जाता इसके कुछ विशेष कारण हो सकते हैं जैसे

  1. अंतरराष्ट्रीय संदर्भ: विक्रम सम्वत अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में अधिक उपयोग में नहीं आता है। अधिकांश अंतरराष्ट्रीय कार्यों और गतिविधियों में ग्रीगोरियन कैलेंडर का उपयोग होता है। विक्रम सम्वत केवल द्वारा कार्यों जैसे पर्व एवं तीज त्यौहार , महूर्त आदि के लिए विभिन्न हिन्दू समुदाय द्वारा ही उपयोग किया जाता है |
  2. संगणकीय तथा व्यापारिक प्रक्रियाएँ: ग्रीगोरियन कैलेंडर का उपयोग संगणकीय और व्यापारिक प्रक्रियाओं में अधिक होता है। बहुसंख्यक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों, उपभोक्ता लेन-देन, और अन्य गतिविधियों में ग्रीगोरियन कैलेंडर का उपयोग आम होता है।
  3. अंतर्राष्ट्रीय समझौते: अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संबंधों में ग्रीगोरियन कैलेंडर का उपयोग विश्वसनीयता और सुगमता की सुनिश्चिति के लिए होता है। इससे ग्रीगोरियन कैलेंडर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता और प्रभावकारीता मिलती है।
  4. व्यावसायिक प्रयोजनों की आवश्यकता: व्यावसायिक और आर्थिक क्षेत्र में ग्रीगोरियन कैलेंडर का उपयोग अधिक सामान्य होता है, क्योंकि यह अधिक विश्वसनीय और संगणकीय प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त है।

इन कारणों से , विक्रम सम्वत का उपयोग अभी वर्त्तमान में केवल भारतीय संस्कृति और धर्मिक उत्सवों में होता है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ग्रिगोरियन कैलेंडर का उपयोग प्रमुख होता है।

विक्रम सम्वत रास्ट्रीय कैलेंडर बनाने की मांग :-

सम्वत को राष्ट्रीय कैलेंडर बनाने की मांग करना एक महत्वपूर्ण और उचित प्रस्ताव हो सकता है, लेकिन इस पर चर्चा करने से पहले कई मुद्दों का ध्यान देना महत्वपूर्ण है। यह कुछ सुझाव देने के लिए सामान्य चर्चा का आधार बना सकता है:

  1. धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध: विक्रम सम्वत को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है, और इसका उपयोग हिन्दू धर्म में त्योहारों और पर्वों के अनुसार होता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए कि कैसे इसे राष्ट्रीय कैलेंडर में शामिल किया जा सकता है और कैसे इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व बढ़ाया जा सकता है।
  2. लोगों की सहमति: राष्ट्रीय कैलेंडर को बदलने के प्रस्ताव को लोगों की सहमति के साथ लाया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न समुदायों, सम्प्रदायों और वर्गों की धार्मिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को समझा जाए और उनका समर्थन प्राप्त किया जाए।
  3. व्यवस्थित संदर्भ: राष्ट्रीय कैलेंडर को बदलने का प्रस्ताव करने के पीछे व्यावसायिक, वैज्ञानिक, और सामाजिक कारणों को ध्यान में रखना आवश्यक है। कैलेंडर का इस्तेमाल आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं में भी प्रभाव डाल सकता है, इसलिए इसे सावधानीपूर्वक सोचा जाना चाहिए।
  4. अंतरराष्ट्रीय संदर्भ: यदि विक्रम सम्वत को राष्ट्रीय कैलेंडर में शामिल किया जाता है, तो इसका अंतरराष्ट्रीय संदर्भ भी ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय कारोबार, पर्यटन, और संबंधों पर भी प्रभाव डाल सकता है।

इन मुद्दों को ध्यान में रखकर, राष्ट्रीय कैलेंडर को बदलने का प्रस्ताव किया जा सकता है, लेकिन इसे सावधानी से और समझदारी से किया जाना चाहिए।

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