काबुल। (Afghanistan statement ) अमेरिकी और नाटो सैनिकों (American and NATO troops) की वापसी के बाद से अफगानिस्तान में अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है. खबर आ रही है कि देश में शांति स्थापित करने के लिए अफगानिस्तान ( Afganistan) तालिबान से दोहा वार्ता करने वाले हैं. आपको बता दें कि तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान को लेकर दावा किया है कि उसने 80 फीसदी हिस्सों पर कब्जा कर लिया है. यहां तक की अफगानिस्तान में स्टेकहोल्डर (stakeholder) के तौर पर अपनी मौजूदगी स्थापित करने के लिए तमाम देशों से संपर्क भी साध रहा है. तालिबान का दावा है कि 20 साल पहले जैसा बिल्कुल नहीं है, (Afghanistan statement वह पूरी तरह से बदल चुका है.
टोलो न्यूज के मुताबिक अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई (Former Afghan President Hamid Karzai) इन वार्ताकारों में शामिल है. मगर अफगानिस्तान ने वार्ता के पहले भारत का जिक्र भी किया है. अफगानिस्तान ने कहा कि अगर तालिबान के साथ वार्ता विफल होती है, तो हम भारत की मदद लेंगे.
भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे (Afghanistan Ambassador Fareed Mamundje) ने एनडीटीवी से बातचीत में स्पष्ट किया कि इस मदद के तहत अफगानी सैन्य बलों को ट्रेनिंग और तकनीकी मदद मुहैया कराना होगा. ना कि सैनिकों को भेजना तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधि देश पर विद्रोहियों के बढ़ते नियंत्रण के बीच बातचीत कर रहे हैं. अमेरिका ने ऐलान किया है अफगानिस्तान में अगस्त के अंत उसका सैन्य मिशन पूरा हो जाएगा. हालांकि, न्यूज एजेंसी एएफपी का दावा है कि दोहा में हो रही शांति वार्ता काफी हद तक विफल हो गई है. तालिबान अब पूरी तरह से सैन्य जीत का ऐलान करने के लिए तैयार है
अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने कहा कि अगर तालिबान के साथ शांति वार्ता सफल नहीं हो पाती है तो आने वाले वर्षों में हमें भारत की सैन्य मदद की जरूरत होगी. उन्होंने स्पष्ट किया, ‘हम भारत से यह मांग नहीं कर रहे हैं कि वो अफगानिस्तान में सेना भेजे.’ अफगानिस्तान के राजदूत ने कहा कि उनके देश को एयर फोर्स की जरूरत होगी. अफगानिस्तान चाहेगा कि उनके एयर फोर्स को पाइलट ट्रेनिंग मुहैया कराई जाए. इसके लिए स्वाभाविक तौर पर भारत मुफीद देश है.
हाल ही में अमेरिकी सैनिकों ने 20 सालों के लंबे युद्ध के बाद अफगानिस्तान के सबसे बड़े एयरबेस को खाली कर अपने सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है. अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता और गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर तालिबान और अफगान सरकार के बीच सत्ता् संघर्ष शुरू हो गया है. ये इलाक़ा 20 सालों से चरमपंथियों के ख़िलाफ़ लड़ाई का केंद्र रहा है. अमेरिका और नेटो की सेना का यहां से जाना ये दिखाता है कि जल्दी ही अफ़ग़ानिस्तान से विदेश सेनाएं की वापसी का काम पूरा होनमे वाला है.
11 सिंतबर को ही अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले की बरसी है. इस हमले में करीब तीन हज़ार लोग मारे गए थे. ये हमले चरमपंथी संगठन अल-कायदा ने किए थे. अल-क़ायदा तालिबान (al-Qaeda Taliban) की मदद से अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय था. इस हमले के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाली नेटो सेना ने अफ़ग़ानिस्तान में चरमपंथियों पर हमले किए और दोनों समूहों को हराया.लेकिन, लंबी लड़ाई में गई जानों और इस पर होने वाले खर्च को देखते हुए अमेरिका अब इस युद्ध को ख़त्म करना चाहता है.
भारत का वाणिज्यिक दूतावास अस्थायी रूप से बंद
अमेरिकी सैनिकों की अफ़ग़ानिस्तान से वापसी और तालिबान के बढ़ते प्रभाव का असर भारत पर बहुत गहरा पड़ता दिख रहा है. अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ (English newspaper ‘The Hindu’) ने पहले पन्ने पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की कि तालिबान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के कंधार स्थित अपने वाणिज्यिक दूतावास को अस्थायी रूप से बंद करने का फ़ैसला किया है. अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) की एक फ़्लाइट से क़रीब 50 राजनयिकों और सुरक्षाकर्मियों को वापस लाया गया है.अख़बार से भारतीय अधिकारियों ने कहा कि भारत सरकार ने यह क़दम सतर्कता के तौर पर उठाया है. 1990 के दशक में कंधार में तालिबान का मुख्यालय (Taliban Headquarters) था और ऐसी रिपोर्ट है कि तालिबान एक बार फिर से कंधार को अपने नियंत्रण में लेने की ओर बढ़ रहा है.
अभी भारत का काबुल स्थित दूतावास और मज़ार-ए-शरीफ़ स्थित एक और वाणिज्य दूतावास बंद नहीं हुआ है. लेकिन विशेषज्ञ आशंका जाहिर कर रहे हैं कि तालिबान इसी तरह बढ़ता रहा तो काबुल में भी भारतीय दूतावास को सुरक्षित रखना आसान नहीं होगा.
भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते (India Afghanistan Relation)
अफगानिस्तान और भारत एक दूसरे के पड़ोस में स्थित दो प्रमुख दक्षिण एशिया देश हैं। दोनों देशों के बीच प्राचीन काल से ही गहरे संबंध रहे हैं। यदि महाभारत काल की बात करें तो अफगानिस्तान के गांधार जो वर्तमान समय में कंधार है, की राजकुमारी का विवाह हस्तिनापुर (वर्तमान दिल्ली) के राजा धृतराष्ट्र से हुआ था।दोनों दक्षिण एशियाई क्षेत्रिय सहयोग संगठन (दक्षेस) के भी सदस्य हैं।
दोनों देशों के बीच संबंध 21 वीं सदी में तालिबान के पतन के बाद से और मजबूत हुए। भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में रचनात्मक हिस्सेदारी की है। 4 अक्टूबर 2011 को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई की भारत यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुई बैठक में सामरिक मामले, खनिज संपदा की साझेदारी और तेल और गैस की खोज पर साझेदारी संबंधी तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। भारत तथा अफगानिस्तान का सम्बंध काफी मित्रता तथा भाईचारा पूर्वक हैं। भारत ने अफगानिस्तान के साथ कई प्रकार के विकासीय समझौते किये हैं। तथा भारत और अफगानिस्तान दोनो एक दूसरे का हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन करते हैं।
द्विपक्षीय रणनीतिक भागीदारी करार 2011 के तत्वावधान में गठित भारत और अफगानिस्तान के बीच रणनीतिक भागीदारी परिषद की दूसरी बैठक 11 सितम्बर, 2017 को नई दिल्ली में आयोजित की गई। भारत की विदेशी मंत्री सुषमा स्वराज तथा अफगानिस्तान इस्लामिक गणराज्य के विदेश मंत्री महामहिम सलाहुद्दीन रब्बानी ने बैठक की सह-अध्यक्षता की। अपनी यात्रा के दौरान विदेश मंत्री रब्बानी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की। प्रधानमंत्री और भारत की विदेश मंत्री ने बल दिया कि दोनों देशों के बीच समय की कसौटी पर खरे उतरे मैत्रीपूर्ण संबंध हैं तथा उन्होंने एक एकीकृत, संप्रभु, लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण, स्थिर, समृद्ध और बहुलवादी अफगानिस्तान के निर्माण में भारत के निरंतर सहयोग को दोहराया। रणनीतिक भागीदारी परिषद ने पारस्परिक हित और साझी समझ के अनेक द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की तथा उन पर विचारों का आदान-प्रदान किया। राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों, व्यापार, वाणिज्य और निवेश, विकास सहयोग, तथा मानव संसाधन विकास, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्रो में चार संयुक्त कार्यकारी समूहों के परिणामों की समीक्षा की गई और उनका सकारात्मक मूल्यांकन किया गया।