Two child policy : देश में बढ़ती आबादी चिंता का विषय हैं. चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर पहुंच चुका है. हमारे समय की सबसे विकट समस्या है जनसंख्या विस्फोट। साल 2030 तक भारत 1 अरब, 52 करोड़, 80 लाख की आबादी के साथ चीन को पछाड़कर पहले नंबर पर आ जाएगा। चीन का भौगोलिक क्षेत्रफल भारत से 3 गुना अधिक है, फिर भी भारत चीन को ‘आबादी युद्ध’ में परास्त करने जा रहा है. 11 जुलाई अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस के दिन राज्य में ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ का ऐलान किया है. उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का पहला ड्राफ्ट जारी किया है. इसके अलावा ड्राफ्ट में टू चाइल्ड पॉलिसी का पालन नहीं करने वालों को भत्तों से भी वंचित करने का प्रावधान है.
ड्राफ्ट बिल में दो बच्चों की नीति का उल्लंघन करने पर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने और सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने से रोकने का प्रस्ताव है. बिल में 4 लोगों का ही राशन कार्ड पर एंट्री सीमित करने का भी प्रावधान है. बिल में सरकारी सेवकों का प्रमोशन रोकने और 77 तरह की सरकारी योजनाओं और अनुदान से भी वंचित करने का प्रावधान है.
जानिए क्या है टू चाइल्ड पॉलिसी : what is Two child policy
एक ‘दो-बाल नीति’ प्रति परिवार दो बच्चों की सरकार द्वारा लगाई गई सीमा है या केवल पहले दो बच्चों को सरकारी सब्सिडी का भुगतान है। दो बच्चों की नीति पहले ईरान, सिंगापुर और वियतनाम सहित कई देशों में इस्तेमाल की जा चुकी है। 1970 के दशक में ब्रिटिश हांगकांग में, नागरिकों को एक सीमा के रूप में दो बच्चे पैदा करने के लिए अत्यधिक प्रोत्साहित किया गया था. (हालाँकि यह कानून द्वारा अनिवार्य नहीं था), और इसका उपयोग इस क्षेत्र की परिवार नियोजन रणनीतियों के हिस्से के रूप में किया गया था। देश की पिछली एक-बाल नीति की जगह, जब तक कि इसे देश की गिरती जन्म दर को कम करने के लिए तीन-बाल नीति द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया गया।
आखिर क्यों है टू चाइल्ड पॉलिसी की आवश्यकता : why two child policy is needed
वर्ष 2010 में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, साल 2048 में भारत की जनसंख्या सर्वाधिक (लगभग 160 करोड़) होने के बाद इसमें गिरावट दर्ज की जाएगी। वर्ष 2100 में आबादी 1.03 अरब रह जाएगी। इस प्रकाशित लेख पर मतभेद हो सकता है, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि भारत की प्रजनन दर प्रति महिला दो बच्चों की है। हाल ही में चीन ने प्रजनन दर की नीति में बदलाव किया है और प्रति महिला तीन बच्चों की अनुमति दे दी है। तकनीकी रूप से जब तक लोग दक्ष नहीं होंगे, तब तक अधिक जनसंख्या का कोई फायदा नहीं है। बहरहाल भारत की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए दो बच्चा नीति पर काम करना जरूरी है।.
भारत के विभिन्न राज्यों के आंकड़े पर ध्यान दे तो पता चलेगा कि दक्षिण और पश्चिम के सभी राज्यों की प्रजनन दर प्रति महिला दो या दो से कम है। इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई है। एक तरफ उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जहां प्रजनन दर को दो से ऊपर हैं। यूपी जैसे राज्यों में प्रजनन दर दो के आसपास लाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। क्यों कि वहां जनसंख्या विस्फोट तेजी से हो रहा है। आज यूपी की कुल जनसंख्या 20 करोड़ से अधिक पहुंच चुकी है। यूपी सरकार को ऐसे में सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रही सरकारी सुविधाओं और सेवाओं से उन लोगों को महरूम रखना भी एक कारगर तरीका हो सकता है जिनके पास दो से ज्यादा बच्चे हैं। इससे उनका ही जीवन स्तर सुधरेगा। संसाधनों में उनके परिवार की हिस्सेदारी बढ़ेगी। बच्चों को अच्छी शिक्षा और सेहत सुनिश्चित हो सकेगी।
क्या होगा अगर रहेंगे दो से अधिक बच्चे ?: What if two child policy is implemented?
यूपी में ‘टू चाइल्ड पॉलिसी का ऐलान हो चुका है. जनसंख्या नियंत्रण को लेकर यह सरकार के द्वारा उठाया गया एक आवश्यक कदम हैं. दो से अधिक बच्चों के माता-पिता सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पाएंगे। उन्हें नौकरी में प्रमोशन भी नहीं मिलेगा। 77 सरकारी योजनाओं व अनुदान का लाभ भी नहीं मिलेगा। साथ ही स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ने समेत कई तरह के प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है।
इसके लागू होने पर एक साल के अंदर सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को शपथ पत्र देना होगा। इसके अलावा स्थानीय निकाय में चुने जनप्रतिनिधियों को शपथ पत्र देना पड़ेगा। वह इसका उल्लंघन नहीं करेंगे। कानून लागू होते वक्त उनके दो ही बच्चे हैं, शपथ पत्र देने के बाद अगर तीसरी संतान पैदा करते हैं, तब प्रतिनिधि का निर्वाचन रद्द करने का प्रस्ताव है. साथ ही चुनाव ना लड़ने का प्रस्ताव भी देना होगा। वहीं, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रमोशन और बर्खास्त करने की सिफारिश की गई है।
क्या जरूरत है 1 बच्चे की पॉलिसी लाने की
पहले से ही देश की आबादी 135 करोड़ हैं. सरकार की टू चाइल्ड पॉलिसी अगर लागू भी हो जाती है तो जनसंख्या नियंत्रण को लेकर उतनी कारगर नहीं हो सकती है. इसके लिए सरकार को 1 बच्चे की पॉलिसी अपनानी चाहिए. इसके लिए भारत को चीन की पॉलिसी को समझना चाहिए. 1979 में चीन ने जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी. क्यों कि चीन में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी. वन चाइल्ड पॉलिसी का असर चीन में देखने को भी मिला. आबादी पर नियंत्रण पाने के लिए चीन ने नसंबदी और जबरदस्ती गर्भपात जैसे उपाय भी कर चुका था. जो कि गलत था. 1979 में चीन की जनसंख्या 97 करोड़ थी. जो अब तक 140 करोड़ के पार पहुंच चुकी है. मगर यहां ये भी समझना होगा कि अगर चीन ने समय रहते वन चाइल्ड पॉलिसी लागू नहीं की तो आज जनसंख्या काफी ज्यादा होती. चीनी सरकार के अनुसार इस दौरान वन चाइल्ड पॉलिसी से चीन ने करीब 40 करोड़ बच्चों को पैदा होने से रोका, जिसने जनसंख्या नियंत्रण में मदद की.
जनसंख्या की तुलना करने पर भारत और चीन की आबादी में करीब 5-7 करोड़ का फर्क है, लेकिन क्षेत्रफल में चीन भारत से 3 गुना बड़ा है. जहां भारत का क्षेत्रफल 32.87 लाख स्क्वायर किलोमीटर है, जबकि चीन का क्षेत्रफल लगभग 95.96 लाख स्क्वायर किलोमीटर है. इसके मुताबिक चीन में जितनी जगह में एक व्यक्ति रहता है. भारत के 3 लोग उतने स्थान पर रहते हैं. जो कि एडजस्टमेंट जैसा ही है. भले ही भारत की आबादी चीन से कम हो, लेकिन इसका घनत्व बहुत अधिक है, जिस पर जल्द ही नियंत्रण करना होगा
भारत के इन राज्यों में अलग-अलग लेवर पर लागू है टू चाइल्ड पॉलिसी
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: 1994 में पंचायती राज एक्ट ने एक शख्स पर चुनाव लड़ने से सिर्फ इसीलिए रोक लगा दी थी, क्योंकि उसके दो से अधिक बच्चे थे.
महाराष्ट्र: जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें ग्राम पंचायत और नगर पालिका के चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. महाराष्ट्र सिविल सर्विसेस रूल्स ऑफ 2005 के अनुसार ऐसे शख्स को राज्य सरकार में कोई पद भी नहीं मिल सकता है. ऐसी महिलाओं को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के फायदों से भी बेदखल कर दिया जाता है.
राजस्थान: अगर किसी के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाता है. राजस्थान पंचायती एक्ट 1994 के अनुसार दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को सिर्फ तभी चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाती है, अगर उसके पहले के दो बच्चों में से कोई दिव्यांग हो.
गुजरात: लोकल अथॉरिटीज एक्ट को 2005 में बदल दिया गया था. उस समय पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. ये नियम बना दिया गया था कि दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को पंचायतों के चुनाव और नगर पालिका के चुनावों में लड़ने की इजाजत नहीं होगी.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़: यहां पर 2001 में ही टू चाइल्ड पॉलिसी के तहत सरकारी नौकरियों और स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी. 2005 में दोनों ही राज्यों ने चुनाव से पहले फैसला उलट दिया, क्योंकि शिकायत मिली थी कि ये विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लागू नहीं है. हालांकि, सरकारी नौकरियों और ज्यूडिशियल सेवाओं में अभी भी टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है.
ओडिशा: दो से अधिक बच्चे वालों को अरबन लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने की इजाजत नहीं है.
बिहार: यहां भी टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है.
उत्तराखंड: बिहार की तरह ही उत्तराखंड में टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन यहां भी सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है.
‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ क्या महिलाओं, दलितों और गरीबों पर अत्याचार?
वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार ने ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ को महिलाओं, दलितों और गरीबों पर अत्याचार बताया है. रवीश कुमार ने कहा कि जिस समाज में महिलाओं को बच्चे जनने की भी आजादी न हो और जहां बेटे की चाह में कई बार गर्भपात करया जाता हो, वहां टू चाइल्ड पॉलिसी बेमानी लगती है.
उन्होंने ड्राफ्ट विधेयक के पहलुओं पर तंज कसते हुए कहा कि यह सिर्फ पंचायत चुनाव लड़ने वालों पर ही क्यों लागू हो? सांसदी और विधायकी का चुनाव लड़ने वालों पर क्यों नहीं लागू हो? वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “यूपी सरकार कानून में इतना लिख दे कि जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे वे नए कानून लागू होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकेंगे तो फिर देखिए क्या होता है. सिर्फ इतना लिख देने भर से चौक-चौराहों की पान की गुमटियों पर जितने लोग आबादी को लेकर बहस कर रहे होंगे, बहस छोड़ भाग खड़े होंगे. यही नहीं उनके विधायक जी भी कानून के इन समर्थकों को अपने बोलेरो से नीचे उतार देंगे.”
TOI की रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने कहा कि बीजेपी के 50 फीसदी ऐसे विधायक हैं जिनके तीन या तीन से अधिक बच्चे हैं. क्या इसी कारण प्रस्तावित कानून में ऐसे विधायकों के चुनाव लड़ने पर रोक की बात नहीं कही गई है? रवीश ने इसी बहाने मीडिया पर भी निशाना साधा और यूपी पंचायत चुनावों में हुई हिंसा की खबरें नहीं दिखाने का मुद्दा उठाया.
उन्होंने कहा कि मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा हिंसा की खबरें नहीं दिखाने के बावजूद जहां-तहां से आमजनों तक हिंसा के वायरल वीडियो पहुंचते ही रहे. उन्होंने बताया कि लखीमपुर खीरी में जहां पुलिस ने महिला की साड़ी खींची थी, वहीं इटावा में पुलिस के अधिकारी शिकायत कर रहे थे कि बीजेपी के समर्थकों ने उन्हें थप्पड़ मारे और बम लेकर आए थे.
टू चाइल्ड पॉलिसी और धर्म
टू चाइल्ड पॉलिसी का भारत में जब जिक्र आता है, तो इसकी एक अलग व्याख्या शुरू हो जाती है. कई लोगों इसे धर्म से जोड़कर देखने लगते हैं. समुदाय विशेष को निशान बनाकर इससे जोड़ा जाने लगता है. जहां तक सवाल है तो भारत के हर धर्म के लगों ने टू चाइल्ड पॉलिसी का विरोध किया है.
आरएसएस ने पिछले सालों में जनसंख्या नियंत्रण की बात जरूर की है, लेकिन 2013 में आरएसएस ने ही ये भी कहा था कि हिंदू जोड़ों को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए. हालांकि, 2015 में रांची में हुई बैठक में आरएसएस ने टू चाइल्ड पॉलिसी की वकालत की. पीएम मोदी ने भी लाल किले की प्राचीर से जनसंख्या नियंत्रण की गुहार लगाई.